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में एहसास हूँ , एहसास ही रहने दो मुझे,
लफ़्ज़ों में पिरो कर मुझे बदनाम न कर।
मैं हवा हूँ , तुझे छू के गुज़र जाउंगी,
मेरे लिए खराब अपनी शाम न कर।
तेरा कसूर था ,तू रहा बीच गैरों के,
तेरा वजूद हिला, मेरे सिर इल्ज़ाम न कर।
ज़िन्दगी ग़ैर के आग़ाज़ पे टिकती कैसे,
ये घर की बात है,इस तरह सरेआम न कर।
हैं कुछ नासूर से मेरे ज़ख्म,
दिल की तिजोरी में,
ये ख़ज़ाना मेरा महफिलों में नीलम न कर।
कोई नज़र तो राह ताकती होगी तेरी भी,
अपने घर लौट जा, ग़ैर के घर शाम न कर।
ये तमाशाई हर मर्ज तमाशा देखेंगे,
ज़ेहन से काम ले ख़ुद का ये अंजाम न कर।
ये गर्ज़ मन्द कहाँ दर्द समझ पाते हैं,
अपने लम्हात समेट ले ,किसी के नाम न कर।
ज़रा ढूँढ ख़ुद को, कहाँ गुम हुआ है तू,
बचा ले हस्ती अपनी,ख़ुद को यूं गुमनाम न कर।
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बहुत ही बेहतरीन
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