30. मेरे मर्ज की दवा नहीं 😔

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मेरा नसीब था , कि हमेशा बेकरार रही।
उसकी याद मेरे ज़हन पे सवार रही।।
यूं तो कुछ भी नहीं था मेरे पास ,
दौलत के नाम पर......
तेरे नाम की मुस्कुराहट,
मेरे चेहरे पे शुमार रही।।

कैसे कह दू कि, गलत नहीं मैं कहीं पर भी।
तुझे पाने की धुन मे खुद से तार तार रही।।

मेरा दिल तेरे लिए, तेरा किसी और के लिए धड़का।
मैं अपने दिल की धड़कनों पें शर्मशार रही।।

तेरे साथ चलती रही,भूली नहीं कभी ये मगर।
तू साथ छोड़ भी दे गर इसके लिए तैयार रही।।

मेरा मर्ज ही कुछ ऐसा था हकीम क्या करता।
मेरे नासूर पे,  हर दवा बेकार रही।।
तू जो भी है जैसा भी है , 
है तो मेरा ही।
तेरे चेहरे की मुस्कुराहट पे,
मेरी जानिसार रही।।


                                                       THE END 


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