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कोई मुझमे मुझसा ही रहता है...
सोचता कुछ और है,
सोचता कुछ और है,
कुछ और ही कहता है।
नहीं होता मज़बूर वो
मज़बूर तो मैं ही होती हूं
फिर भी वो मुझसे ख़फ़ा-खफ़ा ही रहता है|||
मज़बूर तो मैं ही होती हूं
फिर भी वो मुझसे ख़फ़ा-खफ़ा ही रहता है|||
सुनता भी सब है, समझता भी सब,
मेरी हर बात से वक़ीफ है,
न जाने क्यों फिर भी तक़रार है,
ये रिश्ता यूं उलझा ही रहता है।।
मेरी हर बात से वक़ीफ है,
न जाने क्यों फिर भी तक़रार है,
ये रिश्ता यूं उलझा ही रहता है।।
कभी गिले उसको मुझसे
कभी मुझे उस से शिकायत,
लड़ाई जारी रहती है,
दर्द दबा ही रहता है।।।।
कभी मुझे उस से शिकायत,
लड़ाई जारी रहती है,
दर्द दबा ही रहता है।।।।
रिश्तों की ज़िमेदारी मुझपे,
वो आज़ाद है,
बर्बाद परेशान मैं, वो आबाद है।।
वो आज़ाद है,
बर्बाद परेशान मैं, वो आबाद है।।
उस से कोई शिकायत नहीं
बस इतना ही कहना है,
वही तो मैं हूँ जो मैं,मुझमे
कहीं छुपा ही रहता है।।
बस इतना ही कहना है,
वही तो मैं हूँ जो मैं,मुझमे
कहीं छुपा ही रहता है।।
रचनात्मक प्रतिभा आप में कूट-कूट कर भरी हुई है.. हर विधा में आपकी गहराई काबिले तारीफ है..
ReplyDeletebehtareeen.wah. umda
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