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मेरी हर बात में, बात बस तेरी ही है
आ पास आ , पास बैठ के सुन।।
कब से टिकी हुई है, तुझ पर मेरी निगाहें
लब्ज़ों को छोड़ , मेरी ख़ामोशी समेट के सुन।।
मेरे इश्क़ का ग़ुबार तेरे दिल से हो के गुज़रेगा,
आ क़रीब आ मेरे अश्क़ों की चादर लपेट के सुन।।
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मेरी हर बात में, बात बस तेरी ही है
आ पास आ , पास बैठ के सुन।।
कब से टिकी हुई है, तुझ पर मेरी निगाहें
लब्ज़ों को छोड़ , मेरी ख़ामोशी समेट के सुन।।
मेरे इश्क़ का ग़ुबार तेरे दिल से हो के गुज़रेगा,
आ क़रीब आ मेरे अश्क़ों की चादर लपेट के सुन।।
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